इन्टाग्राम पैसे कब देता है ??

सबसे पहले आपको ये जान लेना चाहिए की इन्टाग्राम पैसे देता है या नहीं …

आपको आज तक जीतने भी लोगों से सुना है और बोला है कि इन्सटाग्रान से पैसे कमाये जा सकता है ये सब झूठ है

इन्सटाग्राम से आप कमायी कर सकते हैं लेकिन इन्सटा आपको पैसे नहीं देता है ! अगर आप ये सोचते हो रील और वीडियो बनाने के पैसे देता है तो ये सब झूठ है

इन्सटाग्राम से आपकी कमाई जब होती है जब आपके फ़ोलोवर्स की सख्या अच्छी हो तो आपको इन्सटाग्राम पर कम्पनीया रेस्पोन्सरसिप देती और बदले मे आपको पैसे देती हैं !! आपके जीतने जादा फ़ोलोवर होंगे उतने पैसे मिलते है ||||

बाकी भाइ समझदार बनो 🙏🏼

सम्राट छत्रपति शिवा जी

इनका पुरा नाम छत्रपति शिवाजी राजे भोसले था |ये भारत के महान और रणनीतीकार थे |जिन्होंने 1674 ई0 में पश्चिम भारत में मराठा साम्राज्य की स्थापना की .इसके लिये उनको मुगल बादशाह औरंगजेब से संघर्ष करना पड़ा |सन 1674 में रायगड्ड मे राज्य अभिशेक हुआ और वह – छत्रपति बने.

* इन्होने नयी गौरल्ला युद्घ नीती का अनुसरण किया

* बाल गंगाधर तिलक ने राष्ट्रीय भावना को विकसित करने के लिये शिवाजी राजे जन्मोउत्सव की शुरुआत करी

*शिवा जी की – शम्भा जी, राजाराम, राणुबाई संतान थी.

* प्रमुख घट्नाये –

* सन 1642 शिवाजी और सोयराबाई का विवाह हुआ

* सन 1646 में पुणे के पास तोरण के किले को जीत लिया.

* सन 1659 मे शिवाजी ने किया अफ़जल खान का वध किया.

* सन 1659 में शिवा जी ने बीजापुर पे अधिकार कर लिया .

* सन 1665. में पुरंदर की सन्धि औरंगजेब और शिवाजी के बीच हुयी

* सन 1680में शिवा जी का निधन हो गया.

डा0.बी आर अम्बेडकर

बाबा साहिब अम्बेडकर जी का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के इन्दौर के पास महु नामक जगह पर हुआ था | इनके पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल था जो ब्रिटिश सेना मे थे |और इनकी माता का नाम रमाबाई था |इनके बचपन का नाम भीमराम सकपाल था |इन्होने प्यार 1900 प्रारंभिक से हाई स्कूल की डिग्री प्रताप सिंह हाई स्कूल से प्राप्त करी और 1916 तक इन्होंने landan से बैरिस्टर का course किया फ़िर इन्होने लन्दन से ही लन्दन स्कूल ऑफ़ इकोनोमिक मे एड्मीशन लिया लेकिन पैसे ना होने के कारण पड़ायी बीच में छोड के भारत वापिस आना पडाइन्होने भारत आकर बडौदा की सेना के सचिव के रुप में काम किया |

लेकिन वहां पर भेदभाव के कारण नोकरी छोड दी

सामाजिक संगठन – बहिष्क्रत हितकारिणी सभा एव डिप्रेड क्लासेस एजुकेशन सोसाईटी और पीपुल्स एजुकेशन सोसाईटी

राजनैतिक पार्टी – स्वतंत्र लेबर पार्टी

शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन भारतीय रिपब्लिक पार्टी

प्रमुख पुस्तक :रिलेशन ऑफ कास्ट

शेड्यूल्ड कास्ट फेडरेशन भारतीय रिपब्लिक पार्टीऔर अपने पारसी मित्र के सहयोग से इंग्लैण्ड गए और 1920 M. SC पास कर ली

*बौम्बे विधान परिषद् सदस्य 1926-36

* राजनैतिक उपलब्धीया व पद

श्रम मंत्रि, और वायसराय, कार्य परिषद – 1942-1946

भारतीय संविधान सभा की मसौदा समिति के अध्यक्ष 29 अगस्त 1947-24 जनवरी 1950

भारत के प्रथम कानून एवं न्याय मंत्री 15अगस्त 1947-सितम्बर 1951

राज्य सभा, सदस्य, (बौम्बे) -3अप्रैल 1952-6दिसम्बर 1956

भारत रत्न – 1990

समाधिस्थल – चैत्याभूमि मुम्बई (महाराष्ट्र)

दिल्ली सल्तनत (कुतुबुददीन)

कुतुबुददीन ऐबक घोड़े से गिर कर मरा, यह तो सब जानते हैं, लेकिन कैसे? यह आज हम आपको बताएंगे। वो वीर महाराणा_प्रताप जी का ‘चेतक’ सबको याद है, लेकिन ‘शुभ्रक’ नहीं! तो मित्रो आज सुनिए कहानी ‘शुभ्रक’ की।

कुतुबुद्दीन ऐबक ने राजपूताना में जम कर कहर बरपाया, और उदयपुर के ‘राजकुंवर कर्णसिंह’ को बंदी बनाकर लाहौर ले गया। कुंवर का ‘शुभ्रक’ नामक एक स्वामिभक्त घोड़ा था, जो कुतुबुद्दीन को पसंद आ गया और वो उसे भी साथ ले गया।

एक दिन कैद से भागने के प्रयास में कुँवर सा को सजा-ए-मौत सुनाई गई और सजा

देने के लिए ‘जन्नत बाग’ में लाया गया। यह तय हुआ कि राजकुंवर का सिर काटकर उससे ‘पोलो’ (उस समय उस खेल का नाम और खेलने का तरीका कुछ और ही था) खेला जाएगा।

 स्वंय कुँवर सा के ही घोड़े ‘शुभ्रक’ पर सवार होकर अपनी खिलाड़ी टोली के साथ ‘जन्नत बाग’ में आया। ‘शुभ्रक’ ने जैसे ही कैदी अवस्था में राजकुंवर को देखा, उसकी आंखों से आंसू टपकने लगे।

जैसे ही सिर कलम करने के लिए कुँवर सा की जंजीरों को खोला गया, तो ‘शुभ्रक’ से रहा नहीं गया। उसने उछलकर कुतुबुद्दीन को अपनी पीठ से गिरा दिया और उसकी छाती पर अपने मजबूत पैरों से कई वार किए, जिससे कुतुबुद्दीन के प्राण पखेरू वहीं उड़ गए! इस्लामिक सैनिक अचंभित होकर देखते रह गए।

मौके का फायदा उठाकर कुंवर सा सैनिकों से छूटे और ‘शुभ्रक’ पर सवार हो गए। ‘शुभ्रक’ ने हवा से बाजी

का फायदा उठाकर कुंवर सा सैनिकों से छूटे और ‘शुभ्रक’ पर सवार हो गए। ‘शुभ्रक’ ने हवा से बाजी लगाते हुए लाहौर से उदयपुर बिना रुके दौडा और उदयपुर में महल के सामने आकर ही रुका!

राजकुंवर घोड़े से उतरे और अपने प्रिय अश्व को पुचकारने के लिए हाथ बढ़ाया, तो पाया कि वह तो प्रतिमा बना खडा था। उसमें प्राण नहीं बचे थे। सिर पर हाथ रखते ही ‘शुभ्रक’ का निष्प्राण शरीर लुढक गया।

भारत के इतिहास में यह तथ्य कहीं नहीं पढ़ाया जाता क्योंकि वामपंथी और मुगल परस्त लेखक अपने नाजायज बाप की ऐसी दुर्गति वाली मौत बताने से हिचकिचाते हैं! जबकि फारसी की कई प्राचीन पुस्तकों में कुतुबुद्दीन की मौत इसी तरह लिखी बताई गई है।

नमन् स्वामी भक्त ‘शुभ्रक’ को

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फ़्री सेवा

आप मुफ्त में क्या नौकरी करेंगे?

मानव जीवन बहुत ही कठिन है यह संघर्ष से भरा हुआ है | इस मानव जीवन में भगवान को भी अपनी शक्तियो का प्रयोग करना पड़ा था |सिर्फ़ समाज सेवा ही एक मुफ़्त में कर सकता है वही एक अच्छी सोच और विचार के साथ ?

नहीं तो तो बिना स्वार्थ के कोइ भी मुफ़्त में कुछ भी नहीं करता है | हर चीज की एक कीमत अदा करनी ही पड़ती हैं | सेवा के बदले कुछ ना कुछ देना ही पड़ता | आजकल तो फ़्री कुछ भी नहीं मिलता एक जमाना था जब लोग एक दूसरे को बिना किसी मतलब के सहयोग करते थे | बिना किसी के बदले की भावना के काम करते थे लेकिन.

आज के दौर में बिना अपना लाभ देखे कोइ किसी की ना तो नौकरी करता है और ना ही सहयोग करता है भले ही हम क्यौ ना हो

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